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कथित चमत्कारों से भरी पड़ी है आस्था के प्रतीक राम मंदिर की दास्तां

राम मंदिर का मुद्दा भारतीय राजनीति और जनमानस में हमेशा से ही प्रासंगिक रहा है. इसने दशकों तक भारत की सियासत को प्रभावित किया है. विवाद के बीच लोगों के आस्था के प्रतीक राम मंदिर की दास्तां राम लला के प्रकट होने से लेकर ‘चमत्कारी बंदर’ तक कथित चमत्कारों से भरी पड़ी है.

आज़ादी के दो साल बाद ‘प्रकट भये कृपाला’:

देश को आज़ाद हुए दो साल ही हुए थे. पहले प्रधानमंत्री नेहरु नए भारत की रूपरेखा तैयार कर रहे थे और गृहमंत्री सरदार पटेल देश की सीमाओं को निर्धारित कर रहे थे. मगर अयोध्या में इन सब से दूर बाबरी मस्जिद के रूप में जाने जाने वाली इमारत को राम मंदिर में बदलने की तैयारी चल रही थी. स्थानीय लोगों के अनुसार 23 दिसंबर की सुबह 3 बजे बिजली चमकी और राम लला प्रकट हुए. यह वाक्या बरसों से चल रहे संघर्ष के बीच एक निर्णायक मोड़ की तरह था.

राम जन्मभूमि पर स्थापित भगवान श्रीराम की मूर्ति की प्रतिकृति

इस घटना के बाद स्थानीय पुलिस ने तीन नामजद पंडित अभिराम दास, राम शकल दास और सुदर्शन दास समेत तकरीबन 60 लोगों के खिलाफ़ दंगा भड़काने, अतिक्रमण करने और एक धार्मिक स्थल को अपवित्र करने का मामला दर्ज किया.

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दिव्य बंदर ने फैसले को सही ठहराया:

अपनी आत्मकथा में जस्टिस के. एम. पांडेय ने लिखा है कि एक बंदर उन्हें देवता कि तरह लगा और उसने उनके फैसले पर मुहर लगाई. जस्टिस पांडेय की किताब के अनुसार जिस दिन मंदिर के तालों को खोलने का आदेश जारी किया गया, एक काला बंदर कोर्ट रूम की छत पर पूरे दिन फ्लैग पोस्ट को थामे बैठा रहा था. फैसले को सुनने के लिए वहां मौजूद अयोध्या और फैजाबाद के हजारों लोगों ने उस वानर की तरफ मूंगफली और फल फेंके. हैरत की बात यह रही कि उस बंदर ने किसी भी चीज को हाथ नहीं लगाया।

शाम के 4:40 बजे जैसे ही आदेश जारी हुआ, वह बंदर कोर्ट से चला गया.

फैसले के बाद जिला मजिस्ट्रेट और एसएसपी जस्टिस पांडेय के साथ उनके बंगले तक साथ गए. वह बंदर जस्टिस पांडेय के बंगले के बरामदे में मौजूद मिला. जस्टिस पांडेय उसे देखकर अचंभित रह गए. उन्होंने समझा कि वह कोई दैवीय शक्ति है, इसलिए उन्होंने उस बंदर को प्रणाम भी किया।

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