उत्तर प्रदेश के सीतापुर में हो रहे बच्चों के ऊपर हमला करने वाले कुत्ते हैं या /आदमखोर जानवर? इसकी पूरी तफ्तीश के लिए uttarpradesh.org की टीम ने खैराबाद के तमाम गांवों का भ्रमण किया। इसके बाद चौंकाने वाले सबूत सामने आते हैं। गाँव वालों ने हमला करने वाले जानवरों को देखा है, मगर उनका अंदाज़ा ये बिलकुल सटीक बैठता है कि ये जो हमला करने वाले कुत्ते हैं, ये आम स्ट्रीट डॉग्स नहीं बल्कि आदमखोर जंगली प्रवत्ति के कुत्ते हैं। जो शिकार को सूंघ कर गुपचुप तरीके से उनपर हमला करते हैं। वो ना ही भौंकते हैं और ना ही गुर्राते हैं, उनका सर ज़मीन की तरफ और निशाना अपने शिकार की तरफ ही होता है। हमारी टीम ने जब गाँव-गाँव घूमकर लोगों से बात की तो उनका कहना था कि वो जो हमला करने वाले कुत्ते हैं, उनका शरीर आम कुत्तों की अपेक्षा अलग है और लम्बा है। उनके जबड़े बेहद नुकीले हैं और वो काफी फुर्तीले हैं। उनके कान खड़े और झबरीली पूँछ है और शिकारी जानवर की तरह भागते भी तेज़ी से हैं।

गुरुवार को हुए हमले में चार जंगली कुत्ते थे। प्रत्यक्षदर्शी के अनुसार इनमें एक बड़ा और तीन छोटे थे। पहाड़पुर, रहिमाबाद, गुरपलिया, नेवादा, टिकरिया, जैनापुर जैती खेड़ा, बद्री खेड़ा, कोलिया, महेशपुर, आदि गांव के सैकड़ो ग्रामीणों ने बताया कि हमलावर जंगली कुत्ते कुछ लाल थे और कुछ देखने में काले थे। हमारी एक विशेषज्ञ से बात हुई, जिनके साथ हमने रात में इलाके का भ्रमण किया। जिसमें हमने एक 7 से 8 कुत्तों का झुण्ड देखा जो देखने में कुत्तों जैसा दिख तो रहा था। मगर उनका बर्ताव बिलकुल भी कुत्तों जैसा नहीं था। उनका सर नीचे, कोई आवाज़ न करना, देखते ही भाग लेना, चलते वक़्त सूंघते रहना, लगातार कुछ ढूंढ रहें हों जैसे, उनका मुंह हमेशा खुला रहना, इससे ये मालूम पड़ता है कि ये घरेलु कुत्ते नहीं बल्कि उनसे अलग दिखते हैं। तमाम तथ्यों से ये तो साबित होता है कि ये कोई काम आम कुत्तों का नहीं किसी जंगली जानवर या आदमखोर कुत्ते का हो सकता है।

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बीते बुधवार को सुबह 11 बजे, जबीर अली और लगभग 50 अन्य ग्रामीण सीतापुर गांव में अपने घर लौट आए, छड़ी और तेज धारदार हथियारों से लैस और पसीने में डूबे हुयें। वे एक आम की बाग के पास देखे गए तीन “जंगली कुत्तों” के एक झुण्ड का पीछा करने के बाद वापस घर लौट आए हैं। यह एक सप्ताह हो गया है जब जबीर के बेटे कासिम को भगौतीपुर गांव में मौत हो गई थी। इन्हीं जंगली कुत्तों के हमले से उसकी दर्दनाक मौत हुई थी। जबीर के पूरे समूह का ये दावा है कि उन्होंने सोमवार को जानवरों में से एक को मारने में कामयाब रहे हैं। उनके समूह का ये दावा था कि ये कुत्ते नियमित रूप से देखे जाने वाले कुत्ते नहीं थे, उनकी दिखावट तो कुत्ते जैसी थी मगर ये कुत्ते हों ये कहना मुनासिब नहीं। ये कुछ अलग किस्म के दिखाई देते हैं।

एक समय जब जिला प्रशासन और ग्रामीणों द्वारा तैनात 18 टीमें जो मथुरा आगरा समेत कई जिलों से बुलाई गई हैं कुत्तों को पकड़ने के लिए जो सीतापुर के खैराबाद से लेकर तमाम गाँव में जाके काम्बिंग कर रही हैं। अब तक 12 बच्चों के कथित तौर पर स्थानीय लोग जो हत्याओं में से कुछ कुत्तों को देखने का दावा करते हैं, वे कहते हैं कि जानवरों को पकड़ा नहीं गया अभी तक और गाँव के स्थानीय कुत्तों को बेरहमी से मारा जा रहा है। लेकिन उन आदमखोर कुत्तों को अभी तक प्रशासन की तरफ से लगाई गयी किसी भी टीम ने नहीं देखा है।

दूसरी तरफ राज्य सरकार द्वारा तैनात टीमों ने अब तक 37 कुत्तों को पकड़ कर उन पर कब्जा कर लिया है और दावा किया है कि वे उन लोगों में से थे जिन्होंने बच्चों पर हमला किया था। हालांकि, गवाहों का कहना है कि वे “आकार और व्यवहार” में अलग थे। इन मौतों का सिलसिला पिछले छः महीने से चलता आ रहा है लेकिन एक या दो मौतों से प्रशासन के इसके भविष्य का अंदाज़ा नहीं था और अचानक मई महीने में बच्चों को जब आदमखोर जानवर ने अपना शिकार बनाना शुरू किया तो प्रशासन में खलबली नहीं मची और आनन फानन में कई टीमों को खैराबाद रवाना कर दिया गया। स्थानीय निवासियों का कहना है कि इससे पहले ऐसी घटना इस वृहद स्तर पर कभी नहीं हुई है।

खैराबाद के एक स्थानीय निवासी ने बताया कि आम गाँव के कुत्तों में और उन जंगली आदमखोर कुत्तों के आकार में बहुत अंतर देखने को मिलता है। इनमे से एक कुत्ते ने तो मेरे भतीजे पर हमला किया और गांव के चारों ओर उन आदमखोरों को घूमते हुए भी कई जगह देखा गया हैं जो सामान्य सड़क छाप कुत्तों से अलग हैं। उनके दांत एकदम नुकीले हैं जो एक बार में शरीर में धसा देते हैं और मांस को एक बार में ही नोच कर शरीर से अलग कर सकते हैं। इन आदमखोरों का धड सामान्य कुत्तों की अपेक्षा आगे की तरफ ज्यादा भारी भरकम हैं। साथ ही सभी ने एक अनूठी चीज कही है जिसे हमने देखा है वो नियमित कुत्तों के विपरीत थे। वे कभी भी भौकते नहीं थे भले ही आप अपने हांथ में कोई भी बड़ा हथियार लेकर उनके सामने क्यूँ न खड़े हों।

16 वर्षीय बृजेश कुमार जो इस समूह का हिस्सा हैं वो भी कहते हैं, “मैं अभी भी याद कर सकता हूं कि उन्होंने कसीम पर हमला कैसे किया था। वह अपने बकरियों और उसके 2-3 दोस्तों के साथ बाहर था। जब मैंने कासिम अली पर हमला करते उन जंगली कुत्तों को देखा था तो मैं गन्ने के खेत की तरफ जा रहा था। मैंने एक गन्ना अपने हांथ में उठाया और कासिम को बचाने के लिए उसकी तरफ भागा। उन जंगली कुत्तों ने कासिम पर हमला कर दिया था और उसे नोचने लगे थे कि मैं शोर मचाते हुये उन कुत्तों की तरफ भागा तो उनके झुण्ड के चार कुत्ते तो गन्ने के खेत की तरफ भाग गए लेकिन एक बड़े काले रंग के जानवर रुपी कुत्ते ने अपने जबड़े के बीच कासिम की गर्दन को दबा साथ रखा।”

उन्होंने कहा, “जानवर ने भी मुझ पर हमला किया, लेकिन मैंने एक और छड़ी उठाई और कुत्ते को मारा। लेकिन वो भौंका नहीं पर गुर्रा रहा था और गुर्राते हुए वो गन्ने के खेत की ओर अपने झुण्ड की तरफ़ भाग निकला। फिर मैंने कासिम को गोद में उठाया और गांव की तरफ लेकर भागा। फिर हम उसे अस्पताल ले गए, लेकिन डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया।”

लगभग 12 किमी दूर मसूमपुर गांव में राम कृपाल का कहना है कि कुत्तों ने शुक्रवार सुबह 7 वर्षीय गीता की हत्या कर दी थी, जो “सामान्य कुत्तों से बड़े थे”। गीता की उम्र की दो अन्य लड़कियों ने गीता को दबोचने वाले पांच जानवरों को देखा था। उसकी साथी लड़कियों ने बताया कि “वे गीता को उसकी गर्दन, जांघों और पेट पर काट रहे थे। वे तब भी जिंदा थी, जब वो उसके मांस खा रहे थे। मुझे यकीन है कि अगर हम 5-10 मिनट बाद पहुंचे होते तो हमें गीता का शरीर भी न मिला होता। वे निश्चित रूप से सड़क कुत्तों नहीं थे, “कृपाल ने कहा। वो जंगली जानवर की तरह दिख रहे थे जो लग रहा था बरसों से भूखे हों।

फिरोजपुर गांव में, 10 वर्षीय अमन पर छह कुत्तों के एक झुण्ड ने हमला किया था, जिससे उसे गंभीर चोट लगी थी जिसके बाद उसे सीतापुर जिला अस्पताल भर्ती कराया जाता है, अभी अमन कि स्थिति सामान्य है। अमन के परिवार का कहना है कि उन्होंने आम तौर पर गॉंव में भटकने वाले आवारा कुत्ते तो जंगली जानवरों से या डकैतों से हमें सचेत करने का काम करते थे उन्हें पकड़ कर उनके गले में पट्टा पहनाने का काम कर रहे हैं ताकि अंजान आवारा आदमखोर कुत्तों को पहचाना जा सके। गांव में सभी भटकने वाले कुत्ते अब कॉलर पहनते हैं। भगतौड़ी में, ग्रामीणों ने जिला प्रशासन से अपने पालतू और गाँव के आवारा कुत्तों के लिए कॉलर बैंड प्रदान करने के लिए कहा है।

“वो कुत्ते जैसे दिखते हैं पर कुत्ते है नहीं, जंगली हैं।” पंद्रह साल की सोनम कुमारी बताती हैं। सोनम अपनी दोस्त कोमल के साथ गांव में ही आम के बाग में अमिया बीनने गई थी, तभी वहां जंगली जानवर आ गए और कोमल को नोच डाला। सोनम यह सब अपनी आंखों के सामने देख रही थी, जैसे-तैसे वो अपनी जान बचाकर वहां से भागी और गाँव वालों को बताया। यूपी के सीतापुर के खैराबाद में छह महीनों में हुई 12 बच्चों की मौत के दोषी कुत्ते बताए जा रहे हैं। मामला बढ़ने पर कई दर्जन कुत्तों का एनकाउंटर भी कर दिया गया। हंगामा बढ़ने पर एनकाउंटर बंद कर कुत्तों की नसबंदी शुरु की गई है।

हमारी उत्तर प्रदेश डॉट org की टीम ने खैराबाद क्षेत्र के तमाम गाँव के कई ग्रामीणों से बात की। लगभग सभी ग्रामीणों ने इस बात को माना की जो बच्चों को मार रहे है वो कुत्ते नहीं पर दिखते जरूर कुत्ते जैसे ही है। कुछ गांव वाले इन्हें लकड़बग्घा बता रहे हैं तो कुछ गाँव वाले उन्हें सियार बोल रहे हैं। उनके लम्बे लम्बे दांत, झबरीले बाल लाल आँखे बड़े बड़े पंजे थे जो एक बार में ही शरीर को फाड़ के रख सकते हैं।

खैराबाद क्षेत्र के बद्रीखेड़ा गाँव के माशूक अली ने बताया कि मैं खेत में काम कर रहा था तभी वहां वो कुत्ते आ गए। न वो भौंक रहे थे और न वो गुर्राए, बस जमीन सूंघकर वो मेरे पास आ ही रहे थे तब तक मैं पेड़ पर चढ़ गया। पुलिस जिन कुत्तों को मारा है वो गाँव के हैं। अभी तक उन कुत्तों में से एक या दो ही कुत्ते मरे हैं शायद लेकिन उनके शव को प्रशासन ने अभी तक किसी को दिखाया नहीं है। साथ ही जिन कुत्तों ने हमला किया है जिनका पुलिस इनकाउंटर कर रही है वो उनमे से नहीं है जो हमला कर रहे है।

प्रशासन ने इस समस्या से निजात पाने के लिए कुत्तों को पकड़ने और मारने का काम शुरू कर दिया था। जहां भी कुत्तों का झुंड दिख रहा था बस उन्हें मारा जा रहा था। जिस पर कई पशु प्रेमी संगठनों ने सवाल खड़े किए। लखनऊ की विभिन्न संस्थाओं से कई एनिमल एक्टिविस्ट जब इन गाँवों में गए तो प्रशासन द्वारा इनके एंनकाउटर को रोक दिया गया है। अब अब सिर्फ कुत्तों को पकड़ने का अभियान चल रहा है।

पिछले छह वर्षों से पशु के हित के काम कर रही और आसरा फांउडेशन की अध्यक्ष शिल्पी चौधरी बताती हैं कि कुत्ते जो होते हैं वो हाथ और पैर में काटते हैं। अभी तक जितने भी हादसे देखे हैं, उनमें ज्यादातर गले में वार किया है। जब वो हमला करते हैं तो झुंड में आते हैं और एक ही दिशा में भाग जाते हैं जबकि कुत्तों की ये प्रवृत्ति नहीं होती है।

अभी तक बिना सही पहचान के जितने भी कुत्तों को मारा गया है उनका पोस्टमॉर्टम किए बिना ही जमीन में दबा दिया जा रहा है। इससे ये तो पता ही नहीं चल पाएगा कि हादसे कौन कर रहा है। इसके लिए प्रशासन को भी बोला है। अभी तक तकरीबन 100 कुत्ते मारे जा चुके हैं। शिल्पी ने बताया कि उन जानवरों की पहचान कराने के लिए हमने एक चार्ट बनाया था जिसको कई ग्रामीणों को दिखाया। फोटो में पहचाने गए जानवरों की पहचान कुत्तों की शारीरिक बनावट-बिल्कुल अलग है। वो कुत्ता न होकर लकड़बग्घा ज्यादा लग रहा है।

पशुओं के हित में काम करने वाली कई संस्थाएं इन दिनों खैराबाद क्षेत्र में तथ्यों को जुटाने में लगी हुई है। एनिमल वेलफेयर बोर्ड ऑफ इडिया से जुड़े और पशुप्रेमी संस्था एमआरएसपी के प्रदीप पात्रा ने बताया कि आदमखोर कुत्तों के नाम पर गाँव के पालतू कुत्तों को भी मारा गया। हमे दो कुत्ते वो मिले जिन्हें पुलिस ने गोली तो मारा, लेकिन गोली लगने के बाद भी वे जीवित है। इनका इलाज भी मैं कर रहा हूं। जहां-जहां बच्चों के साथ हादसे हुए वहां-वहां हमारी टीम गई है गाँव वालों ने खुद बताया कि पुलिस कहती है गांव के सारे कुत्तो को मार दो। पुलिस वाले डरा धमका कर गांव में आते हैं और सोते कुत्तो को गोली मार देते हैं।

इस पूरी घटना के बारे में खैराबाद सिटी मजिस्ट्रेट राकेश पटेल का कहना हैं कि पुलिस द्वारा कुत्तों का एंनकाउटर किया जा रहा है ये बिल्कुल गलत खबर हैं। हम लोगों ने अभियान चलाया जिसके तहत कुत्तों को पकड़ा और लखनऊ कांहा उपवन भेजा है। हर कुत्ते पर 1200 रूपए खर्च किया जा रहा है। इसके अलावा लोगों को भी जागरूक कर रहे है।

जिले के मुख्य पशु चिकित्साधिकारी रवींद्र प्रसाद यादव का मानना हैं कि जो भी हमले हो रहे है वो साधारण कुत्तों के द्वारा नहीं किए जा रहे है। जो हमला कर रहे हैं वो कुत्तों जैसे हैं लेकिन पालतू कुत्ते नहीं है। ये सीधे गर्दन पर हमला करते है। अब तक जितने भी तथ्य मिले है उनसे यही लग रहा है कि भेड़िये और पालतू कुत्तों की मिक्स ब्रीड हैं। क्षेत्र में अभी प्रशासन ने कॉम्बिंग ऑपरेशन जारी रखा हुआ है। भारी संख्या में कुत्तों की पकड़ की जा रही है। 33 कुत्ते लखनऊ लाए जा चुके हैं, जिनको एंटी रेबीज इंजेक्शन लगाए गए हैं। साथ ही उनकी नसबंदी की जा रही है।

इस घटना के लिए कुछ ग्रामीण बूचड़खाना बंद होने की भी वजह बता रहे हैं। गुरपलिया गाँव के अतिक अहमद बताते हैं कि चील घर हटने और बूचड़खाना बंद होने से यह बच्चों को खाने लगे। पहले मांस के टुकड़े इन कुत्तों को मिल जाते थे पर अब नहीं मिलते। लेकिन उत्तर प्रदेश के कई बूचड़खाने बंद हुए लेकिन सीतापुर के अलावा ऐसी कोई भी घटना सामने नहीं आई है।

कुछ सालो पहले सूरत में करीब 40 हजार कुत्तों को मार दिया गया था। कुत्तों को मारने के बाद पूरे शहर में प्लेग बीमारी फैल गई। लोगों के स्वास्थ्य में लाखों का खर्च हुआ। प्रदीप पात्रा ने बताया कि गाँव में लगातार कुत्तों को मारा जा रहा है ऐसे में ग्रामीणों को जागरूक करना बहुत जरूरी है इसलिए यह जानकारी लोगों तक पहुंचा रहे ताकि कुत्तों को मरने से रोका जा सके। ताकि कुत्तों के मरने से फैलने वाली प्लेग बीमारी को रोका जा सके। सीतापुर सिटी मजिस्ट्रेट हर्ष देव पांडे ने जोर देकर कहा कि हमले के पीछे कुत्ते थे, लेकिन यह समझा नहीं सकता कि अब हमले क्यों बढ़ गए हैं। उनका कहना है कि 32 कब्जे वाले कुत्तों को लखनऊ में एक पशु आश्रय कान्हा उपवन भेजा गया है, जहां “व्यवहार में बदलाव” निर्धारित करने के लिए परीक्षण किए जाएंगे।

“अब हम मानते हैं कि समस्या लगभग हल हो गई है क्योंकि ऐसा लगता है कि बच्चों पर हमला करने वाले कुत्ते पकड़े गए हैं। प्रभावित गांवों के लोगों ने 12 से 13 ऐसे कुत्तों की हत्या कर दी है, “उन्होंने आगे कहा। बंदर पकड़ने वालों की चार सदस्यीय टीम को समस्या से निपटने के लिए भी शामिल किया गया है। वन अधिकारियों के साथ, डब्ल्यूडब्ल्यूएफ टीम ने तीन स्थानों का दौरा किया जहां बच्चों को कुत्तों द्वारा मौत के घाट उतारा गया था। जिला वन अधिकारी अनिरुद्ध पांडे ने कहा कि टीम ने गुरुपालिया, फिरोजपुर और करबाला के वैश्विक पोजिशनिंग सिस्टम स्थान पर आंखों के गवाहों से बात की और उनके बयान दर्ज किए।

पांडे का कहना है कि जानवरों के पाग-निशान जैसे नमूने साथ ही रक्त दाग एकत्र किए गए हैं साथ ही पांडे ने कहा कि आगे की कार्यवाही के लिए पग-अंक प्रयोगशाला में भेजे जाएंगे। प्रशासन ने पशु व्यवहार विशेषज्ञ वसीफ जमशेद को भी शामिल किया है जो 2016 में पीलीभीत में मानव-बाघ संघर्ष को खत्म करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा चुके हैं। वो भी इसकी तफ्तीश में लगे हैं कि कौन से जानवर हैं जो बच्चों पर इस तरह से अटैक कर रहे हैं। इस बीच, पुलिस ने क्षेत्र पर नजर रखने के लिए ड्रोन का उपयोग शुरू किया। सीतापुर डीएम शीतल वर्मा ने कहा कि डब्ल्यूडब्ल्यूएफ के अधिकारी निरीक्षण के बाद अपनी रिपोर्ट जमा करेंगे जबकि भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान के विशेषज्ञों से भी सहायता के लिए कहा गया है।

घरों से निकलना हुआ दूभर, लोगों दहशत

इन गांवों में आवारा कुत्तों का आतंक कायम है। रात में यह और भी खूंखार हो जाते है। डरे-सहमें शहरवासी रात में घर से निकलने को हिचकिचाते हैं। प्रशासन इसे लेकर जरा भी गंभीर नहीं है। लोगों में दशहत का माहौल बना हुआ है। हाल में कुत्तों ने 10 बकरियों को काट कर मार डाला था। यहां आवारा कुत्तों की तादात बढ़ गई है। दिन की तुलना में कुत्ते रात में ज्यादा खतरनाक हो जाते है। रात में झुंड बनाकर सड़कों पर निकल पड़ते है। कुत्ते गांवों की गलियों में रात भर उधम मचाते हैं। कोई अंजान व्यक्ति अगर रात में आ जाता है तो यह उसे काटने के लिए दौड़ा लेते है। कुत्ते बाइक सवार लोगों को भी काटने के लिए दौड़ा लेते है। कई बाइक सवार तो भागने के चक्कर में गिरकर चुटहिल तक हो चुके हैं।

12 कुत्तों को आखिर किसने नोचकर मारडाला

सीतापुर जिला के खैराबाद इलाके में आदमखोर कुत्तों का आतंक इस कदर है कि नवंबर 2017 से 5 मई 2018 तक आदमखोर कुत्ते 12 बच्चों को अपना निवाला बना चुके हैं। इन बच्चों में मात्र 6 के ही पोस्टमार्टम कराए गए हैं। कुत्तों से निपटने वाली टीम में शामिल खैराबाद थाना अध्यक्ष सचिन सिंह ने बताया कि 6 परिवार के सदस्यों ने अपने बच्चों के शवों को पोस्टमार्टम कराने से इंकार कर दिया। इसलिए 6 बच्चों के शवों का पोस्टमार्टम कराया जा सका है। हलाकि जितने भी बच्चों की मौत हुई है सभी के आंकड़े नाम पता दुरुस्त हैं।

चित्तीदार और बाहर दांत निकले हिंसक जानवरों ने किया हमला

अधिकतर मामलों में हिंसक जानवरों ने गले पर हमला (जगलर वेन नष्ट करना) बच्चों की जान ली। यह काम शहरी क्षेत्रों के पशुओं का नहीं हो सकता। यह आदत जंगली हिंसक वन्यजीवों में होती है। कुत्तों के हमले में विनोद नोचकर पंजा मारकर नुकसान पहुंचा सकते हैं न कि गले को सीधा टारगेट बनाकर। मारे गए सभी पीड़ित बच्चे ही हैं जो कि हिंसक वन्यजीवों के लिए आसान टारगेट हैं। टीम के सदस्यों ने पीड़ितों से बातचीत में पाया कि उन्होंने चित्तीदार कुत्ते से ऊंचे जानवर बाहर दांत निकले वाले जानवर देखे जो उन पर हमला करके भागे। इनसे प्रतीत होता है कि वहां वारदातों में कुत्तों के अलावा अन्य हिंसक जानवरों की भी भूमिका है।

 

कुत्तों को गले में पहना दें पट्टा-जिलाधिकारी

आदमखोर आदमखोर कुत्तों के आतंक से रोजाना बच्चों की हो रही मौत पर डीएम ने पहचान का नया तरीका निकाला है। उन्होंने लोगों से अपील की है कि अगर कोई कुत्ता अपने घर पर आता है तो उसके गले में पट्टा पहना दे। इससे इसकी पहचान हो सकेगी। इससे आदमखोर कुत्तों को पकड़ने में आसानी रहेगी। लेकिन सवाल उठता है कि आखिर इन को पट्टा पहन आएगा कौन? पट्टा पहनाने की किसी विभाग को जिम्मेदारी नहीं दी गई है। बल्कि सिर्फ जन सहयोग ही मांगा गया।

लखनऊ में हो रही खूंखार कुत्तों की नसबंदी

सीतापुर के खूंखार कुत्तों की लखनऊ में नसबंदी हो रही है। सीतापुर में बच्चों पर हमला करने वाले खूंखार कुत्तों की नसबंदी लखनऊ में की जा रही है। इसके लिए कुत्तों को सीतापुर से लखनऊ नगर निगम के कान्हा उपवन में लाया गया है। शनिवार को यहां बारिश कुत्तों को लाकर नसबंदी की गई। 48 घंटे के अंदर इन कुत्तों को वापस सीतापुर में उनकी मूल जगहों पर छोड़ दिया जाएगा। लखनऊ नगर निगम के मुख्य पशु चिकित्सक डॉक्टर अरविंद राव ने बताया कि सीतापुर में नसबंदी किए जाने की सुविधा नहीं है। इसके बाद डीएम सीतापुर में सचिव नगर विकास और नगर आयुक्त लखनऊ से मदद मांगी थी।

कान्हा उपवन में ही खाने-पीने का इंतजाम

जनहित को देखते हुए यह फैसला लिया गया कि वहां के कुत्तों को सीतापुर प्रशासन लखनऊ भेजें। यहां लखनऊ नगर निगम के कान्हा उपवन में उन्हें रखकर नसबंदी की जा रही है। डॉ राव का कहना है कि कानून के मुताबिक आवारा कुत्तों को पकड़ कर केवल नसबंदी की जा सकती है। उनको मूल निवास स्थान से हटाया नहीं जा सकता। नसबंदी के बाद वापस इन कुत्तों को सीतापुर ही भेज दिया जाएगा। अभी तक 22 कुत्ते हमें मिल चुके हैं। आगे भी सीतापुर प्रशासन ज्यादा कुत्ते भेजेगा। इनके खाने-पीने का इंतजाम भी हम कान्हा उपवन में करा रहे हैं।

चारो तरफ शोर है कि सीतापुर के खैराबाद में आवारा कुत्तों का आतंक है। यहां आदमखोर कुत्तों ने करीब एक दर्जन बच्चों को नोचकर मौत के घाट उतार दिया। लेकिन क्या आप को पता है कि कुत्ते इतने वफादार होते हैं कि वह ही बदमाशों और खूंखार जानवरों से अपनी जान पर खेलकर सबकी रक्षा करते हैं। ऐसा ही एक मामला खैराबाद के टिकरिया गांव का है। यहां 11 साल की सावनी चौधरी सुबह करीब साढ़े पांच बजे अपनी सहेलियों के साथ शौच के लिए गई थी। उसी बीच उस पर हमला हुआ।

कुत्ते कभी गर्दन पर वार नहीं करते

बच्ची की दादी फूलमती और बड़ी बहन दामिनी चौधरी ने बताया कि वे गांव के कुत्ते नहीं, बल्कि बाहरी थे। उन्होंने गर्दन पर हमला किया। उन्होंने अपने घर के सामने ही खड़े गांव के एक कुत्ते की ओर इशारा करते हुए बताया कि यह तो सावनी के साथ ही गया था। जब बाहरी कुत्तों ने हमला किया तो इसने सावनी को बचाने का प्रयास किया। उसको भी शिकारी कुत्तों ने घायल कर दिया। उन्होंने कहा कि कुत्ते बहुत बफादार होते हैं, वह कभी गर्दन पर वार नहीं करते। हमला करने वाले जंगली सियार ही हैं, जो झुंड में आते हैं और बच्चों की गर्दन पर ही वार करते हैं। उनकी बनावट एक दम गांव के कुत्ते की ही तरह होती है। शरीर और मुंह थोड़ा बड़ा होता है। इन जंगली सियारों के नुकीले दांत बाहर निकले होते हैं।

वन्यजीव प्राणी भी मान रहे जंगली जानवर कर रहे हमला

वन्य जीव प्रेमियों के अनुसार, ग्रामीण जो बता रहे हैं, उसके अनुसार शिकार करने वाले कुत्ते नहीं हैं। सियार और भेड़िया झुंड में शिकार करते हैं। गर्दन पर हमला करने की प्रवृत्ति जंगली जानवर की होती है। कुत्ता गर्दन पर हमला करके नहीं मारता। ऐसे में वन्य जीव विशेषज्ञों को तय करना चाहिए कि हमला कौन कर रहा है। ऐसे ही गांव के कुत्तों को बंदूक और लाठी डंडों से मारना ठीक नहीं है। पूर्व केंद्रीय मंत्री जितिन प्रसाद ने रविवार को इलाके के कोलिया टिकरिया गांव जाकर पीड़ित परिवारों से मिलकर हालचाल जाना। उन्होंने कहा कि आर्थक मदद के लिए सरकार से मांग करेंगे। प्रशासन को चाहिए कि बच्चों की सुरक्षा के लिए मुकम्मल इंतजाम करें।

वन्यजीव प्राणी भी मान रहे जंगली जानवर कर रहे हमला

वन्य जीव प्रेमियों के अनुसार, ग्रामीण जो बता रहे हैं, उसके अनुसार शिकार करने वाले कुत्ते नहीं हैं। सियार और भेड़िया झुंड में शिकार करते हैं। गर्दन पर हमला करने की प्रवृत्ति जंगली जानवर की होती है। कुत्ता गर्दन पर हमला करके नहीं मारता। ऐसे में वन्य जीव विशेषज्ञों को तय करना चाहिए कि हमला कौन कर रहा है। ऐसे ही गांव के कुत्तों को बंदूक और लाठी डंडों से मारना ठीक नहीं है। पूर्व केंद्रीय मंत्री जितिन प्रसाद ने रविवार को इलाके के कोलिया टिकरिया गांव जाकर पीड़ित परिवारों से मिलकर हालचाल जाना। उन्होंने कहा कि आर्थक मदद के लिए सरकार से मांग करेंगे। प्रशासन को चाहिए कि बच्चों की सुरक्षा के लिए मुकम्मल इंतजाम करें।

गांव से कुत्ते समाप्त होना चिंता का विषय

इस संबंध में पूरा मामला क्या है यह रिपोर्ट आने के बाद ही पता चल पाएगा। लेकिन एनिमल एक्सपर्ट का कहना है कि अब तक सीतापुर प्रशासन ने करीब 80 कुत्तों की हत्या करवा दी है। इसके चलते गांव में कुत्ते समाप्त होने की कगार पर हैं। अगर कुत्ते समाप्त हो गए तो जंगली जानवरों का हमला और भी गांव में बढ़ जाएगा। क्योंकि अगर कोई जंगली जानवर आता है तो कुत्ते ही उससे लोहा लेकर उसको गांव से बाहर भगाते हैं। लेकिन जंगली जानवर के हमले की अफवाह कुछ इस कदर फैली कि सारे आरोप कुत्तों पर लगे। गांव वालों ने जिला प्रशासन के साथ मिलकर करीब 30 कुत्तों की हत्या कर दी जो कि इंसानियत को शर्मसार करने वाला है।

गौरतलब है कि सीतापुर जिले के खैराबाद क्षेत्र में आदमखोर कुत्तों पर मासूमों को नोचकर मारने का आरोप लगा।अभी हाल ही में कुत्तों द्वारा दो मासूमों को नोचकर मारडालने के मामले के बाद आक्रोशित ग्रामीण चुन चुन कर आदमखोर कुत्तों को मौत के घाट उतार रहे हैं। बताया जा रहा है कि घटना के बाद ग्रामीणों ने कुत्तों को मारने का अभियान चलाकर 80 कुत्तों की हत्या कर दी। कुछ को फांसी पर लटका दिया गया कुछ को जहरीला पदार्थ खिलाकर मौत के घाट उतारा गया। ग्रामीणों की माने तो आदमखोर कुत्तों का शिकार हुए 9 मासूम मौत के मुंह में समा गए। इतना ही नहीं इन कुत्तों के हमले से 18 लोग घायल हो चुके हैं जबकि कुत्तों ने करीब 100 से अधिक लोगों का अब तक काटा है।

30 कुत्तों को ग्रामीणों ने मौत के घाट उतारा

जानकारी के मुताबिक, अभी हाल ही में हुई मासूमों की मौतों के बाद ग्रामीणों ने अभियान चलाकर पहाड़पुर, रहिमाबाद, गुरपलिया, नेवादा, टिकरिया, जैनापुर जैती खेड़ा, बद्री खेड़ा, कोलिया, महेशपुर, आदि गांव के सैकड़ो ग्रामीणों ने अपना काम छोड़ कर कुत्तों की तलाश कर 30 कुत्तों को मौत के घाट उतार दिया। ग्रामीणो ने कई जगह पर पर कुत्तों को मारकर पेड़ पर फंदे से लटका दिया, तो जगह मारकर फेंक दिया।

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