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राज्य सूचना आयोग या ‘विभाग के नाम पर लीपापोती’!

UP information commission

RTI का जिक्र आते ही सामान्यतया मन में बात आती है कि इसके जरिये हम सरकारों से किसी प्रकार की सूचना प्राप्त कर सकते हैं. एक फॉर्म भरकर, अपनी जानकारी के साथ सम्बंधित विषय का उल्लेख कर वो फॉर्म राज्य सूचना आयोग को भेज देते हैं. लेकिन कुछ मामलों को छोड़ दें तो, RTI के जरिये कोई जानकारी लेने के लिए मशक्क़त काफी करनी पड़ती है. इसके पीछे छिपे हुए कारणों पर गौर करने की जरुरत है. ये वो कारण हैं जो परोक्ष या अपरोक्ष रूप से भ्रष्टाचार की जड़ों को मजबूत करने का काम करते हैं.

लंबित हैं 47684 मामले:

सबसे पहले राज्य सूचना आयोग में शिकायतों पर गौर करें कितनी शिकायतें यहां दर्ज हुई है इन शिकायतों की संख्या को जानकर वाकई हैरानी होती है अभी तक कुल 45684 मामले लंबित हैं 2015-6 में कूल अवशेष 55422 थे जिनमें नई शिकायतें 33072 दर्ज हुईं. इनमें आंकड़ा दिया गया कि 36856 मामलों का निस्तारण किया गया.

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इस लिहाज से 51638 मामले वर्ष के अंत में शेष रह गए. वहीँ 2016-17 की बात करें तो 51638 मामलों में 35917 का निस्तारण हुआ जबकि 31963 मामले और नए आए. इस प्रकार वर्ष कैसे 47684 मामले बच गए जिनका निस्तारण नहीं किया जा सका है. आंकड़ों पर गौर करें तो यह मालूम होता है कि जो पुराने लंबित मामले हैं वह विभाग पर और भी भारी पड़ रहे हैं.

दूसरे विभागों के कई कर्मचारी करते हैं काम:

रिटायरमेंट के बाद भी टिके कुछ अधिकारी

दोषी कर्मचारियों से जुर्माना नहीं वसूला गया:

आरटीआई एक्ट 2005 की धारा 20 के तहत अगर कोई सूचना अधिकारी द्वारा सूचना उपलब्ध नहीं कराई जाती है तो उस पर जुर्माना लगाया जाएगा यह जुर्माना लगाया जायेगा.

राजनीतिक दबाव में काम कर रहा है विभाग:

आरटीआई एक्टिविस्ट संतोष तिवारी से हमने बातचीत की तो उन्होंने बताया कि जो अधिकांश लंबित मामले हैं वह विभागों के और उनके मंत्रियों के भ्रष्टाचार के हैं.

दिल्ली में हुई थी यूपी सरकार की फजीहत:

जिस प्रकार का सिस्टम यूपी में आरटीआई का चल रहा है उसे देखते हुए आने वाले समय में इनसे उम्मीद करना बेमानी होगी. बचे हुए करीब 47000 से ज्यादा केस को कैसे निपटाएंगे ये मुश्किल काम लगता है. राजनीतिक दबाव, भ्रष्ट मंत्रियों और ब्यूरोक्रेसी का दखल होना यह तमाम चीजें इस सिस्टम को इतना स्लो कर चुकी हैं कि विभाग सूचना देने के नाम पर खानापूर्ति करता दिखाई दे रहा है.

इन कारणों को जानने के बाद सरकार के उन दावों की पोल भी खुलती नजर आएगी जिसमें सरकार प्रदेश को भ्रष्टाचार मुक्त राज्य बनाने की बात करती है. किस प्रकार सरकारी तंत्र असहाय और बेबस है इनके पीछे कारणों को जानने के बाद सरकार से सवाल करना लाजिमी है कि आखिर कब ये सिस्टम सुधरेगा और कब लोग भ्रष्टाचार मुक्त वातावरण में साँस ले सकेंगे.

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