उप्र विधानसभा चुनाव 2017 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी ने अपने घोषणा पत्र में सबसे प्रमुख मुद्दा ‘कर्जा माफ बिजली बिल हाफ’ रखा है, परन्तु शायद कांग्रेस पार्टी के नेता अपने गठबंधन के साथी समाजवादी पार्टी के कार्यकाल को भूल गये हैं।

  • समाजवादी पार्टी की सरकार ने विगत 5 वर्षों में बिजली दर बढ़ाने का कीर्तिमान स्थापित कर दिया है।
  • औसत बिजली दर बढ़ोत्तरी व रेगुलेटरी सरचार्ज को जोड़ दिया जाये तो 5 वर्षों में सपा ने 50 से 55 प्रतिशत बिजली दरों में औसत वृद्धि की।
  • सपा सरकार ने प्रत्येक वर्ष बिजली दरों में वृद्धि की।
  • साथ ही सपा सरकार के कार्यकाल में इलेक्ट्रिसिटी ड्यूटी भी 5 से 9 प्रतिशत कर दी गयी, जो पहले कुछ पैसे प्रति यूनिट थी।

बसपा ने केवल तीन बार बढ़ाईं थी दरें

  • वहीं उससे पूर्व बसपा सरकार के 5 वर्ष के कार्यकाल में केवल 3 बार ही बिजली दर में वृद्धि की गयी, जो कुल औसत लगभग 25 प्रतिशत रही, जिसका असर किसानों पर नहीं पड़ा था।
  • अब अपने गठबंधन के भरोसे कांग्रेस पार्टी का यह घोषणा पत्र कभी नहीं पूरा होने वाला है।
  • कांग्रेस पार्टी शायद यह भूल गयी है कि जब बिजली दर बढ़ोत्तरी पर उपभोक्ता परिषद ने लम्बा संघर्ष किया, सभी राजनैतिक दलों से सहयोग मांगा जिसमें कांग्रेस पार्टी भी शामिल थी।
  • उस दौरान न तो बिजली दरों में कमी गयी और न ही सूखाग्रस्त बुन्देल खण्ड के किसानों की बिजली माफी पर कोई निर्णय लिया गया।
  • लम्बी लड़ाई के बाद भी उप्र सरकार ने दरों में कोई भी कमी नहीं की थी जबकि सभी पार्टियों ने विधानसभा में भी इस मुद्दे को जोर शोर से उठाया था।

उपभोक्ताओं के साथ सरकार ने नहीं किया न्याय

  • उप्र राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने कहा कि बिजली क्षेत्र में सपा के कार्यकाल में विद्युत उपभोक्ताओं को बड़े पैमाने पर समस्याएं उठानी पड़ी।
  • अनेकों जिलों में ज्यादा बिजली दिये जाने के नाम शहरी टैरिफ वसूली गयी।
  • कांग्रेस पार्टी को सबसे पहले यह बात जनता को बतानी चाहिए कि उसे उसके गठबंधन साथी सपा ने बिजली बिल हाफ करने का आश्वासन दिया है कि नहीं? या फिर जनता के साथ होगा फिर धोखा।
  • क्योंकि जब उपभोक्ता परिषद ने बिजली दर बढ़ोत्तरी पर लम्बे समय तक संघर्ष किया।
  • इसी बीच लाइन हानि कम करके बकाया वसूल कर किसानों व घरेलू उपभोक्ताओं की दरों में 25 से 50 प्रतिशत दरों में कमी का प्रस्ताव उप्र सरकार व राज्य योजना आयोग सहित सपा के नेताओं को सौंपा।
  • राज्य योजना आयोग ने भी उपभोक्ता परिषद के वित्तीय तर्क को माना और अनेकों बार ऊर्जा विभाग को पत्र लिखा।
  • फिर भी उपभोक्ताओं के साथ न्याय नहीं किया गया।
  • इसी प्रकार बुन्देलखण्ड व सूखाग्रस्त किसानों की बिजली दरों में कमी किये जाने हेतु उपभोक्ता परिषद द्वारा दाखित प्रत्यावेदन पर नियामक आयोग ने पावर कार्पोरेशन से प्रस्ताव मांगा, परन्तु सरकार के इशारे पर उसे भी टाल दिया गया।
  • ऐसे में प्रदेश का विद्युत उपभोक्ता कैसे मान लेगा कि कांग्रेस पार्टी का घोषणा पत्र सही है, जबकि उसका गठबंधन साथी बिजली दर बढ़ाने का कीर्तिमान स्थापित कर चुका है।
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