हमारा देश कृषि प्रधान देश है फिर भी देश के अन्नदाता यानी कि हालात दयनीय बनी हुई है। चाहे सरकार किसी की भी आये आते ही सरकार किसानों के जख्मो पर मरहम तो लगाना प्रारम्भ कर देती है पर अफसोस यह उनकी मुहिम कुछ ही दिन तक सिमट कर रह जाती है फिर उनकी किसान हित की सारी योजनाएं सफल या कारगर साबित नही हो पाती।

 

  • बेशक, इस समय जिस तरह का कृषि संकट है, उसमें किसानों की कर्जमाफी एक महत्वपूर्ण जरूरत भी है।
  • ठीक वैसे ही, जैसे कई मौकों पर उद्योगों, खासकर सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों के कर्ज माफ होते रहे हैं।
  • कर्जमाफी के पीछे का एक तर्क यह भी है कि दो साल पहले हुई नोटबंदी का सबसे ज्यादा नुकसान किसानों को हुआ।
  • क्योंकि एक तो उनका सारा कारोबार नगद ही होता है और जब नोटबंदी हुई।
  • उस समय वे कैशलेस नाम की चीज से कोसों दूर थे, इसलिए कर्जमाफी तत्काल राहत का काम कर सकती है।
  • पिछले कुछ समय में जिस तरह से कर्ज में डूबे किसानों द्वारा आत्महत्या की एक के बाद एक खबरें सामने आईं।
  • उसने भी सरकारों और राजनीतिक दलों पर कर्जमाफी का दबाव बनाया।
  • लेकिन यह भी एक सच है कि कोई भी राजनीतिक दल, कोई भी अर्थशास्त्री और यहां तक कि कोई भी किसान संगठन यह नहीं कह रहा कि कर्जमाफी से कृषि संकट खत्म हो जाएगा और किसानों के सारे दुख दूर हो जाएंगे।

सब इसे तत्काल राहत ही मान रहे हैं।

  • मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में कर्जमाफी के ऐलान के बाद बाकी राज्यों के किसानों को भी उम्मीद है कि अगले साल लोकसभा चुनाव  के पहले सरकार कर्ज माफ करने का ऐलान कर सकती है।
  • इसी आस में कई राज्यों में किसानों ने अपने लोन की किश्तें देना बंद कर दिया है।
  • मसलन उत्तर प्रदेश के कानपुर मंडल में ही कर्ज अदायगी में 60 फीसदी गिरावट आई है।
  • यहां पिछले वित्तीय वर्ष में 70 फीसदी किसानों ने किश्तें जमा की थीं।
  • इस बार मुश्किल से 30 फीसदी ने ही किश्तें जमा की हैं।
  • अन्य शहरों व राज्यों में भी यही स्थिति है।

[penci_blockquote style=”style-1″ align=”none” author=””]सरकार बनते ही किसानों के कर्ज माफ।[/penci_blockquote]

  • मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री ने शपथ ली।
  • कुछ ही घंटों में यह खबर आ गई कि दोनों राज्यों की सरकारों ने किसानों के कर्ज माफ कर दिए हैं।

उम्मीद है कि राजस्थान से किसी भी समय यह खबर आ सकती है।

  • वैसे इस कर्जमाफी को कांग्रेस की किसी नीति से जोड़कर देखने की जरूरत नहीं है।
  • अगर किसी और पार्टी की सरकार बनती, तो वह भी सबसे पहले किसानों की कर्जमाफी ही करती।
  • लेकिन इस बिंदु पर उत्तर प्रदेश सरकार बिल्कुल खरा नही उतर सकी।
  • यूपी का किसान पिछले कई वर्षों से खून के आंसू रोने पर मजबूर है।
  • उन्हें उनकी लागत व खेत मे बोई फसल का खर्च भर मिल रही सरकार के फसल क्रय के मूल्य के बराबर नही हो पाता तो फिर अतिरिक्त खर्चे व घर का खर्च निकाल पाना उनके लिए मुश्किल से हो गया।
  • जिसके चलते वह लोन ले लेता है फिर उस खर्च को चुका पाने में अश्मर्थ हो जाता है।
  • फिर धीरे धीरे दिन व दिन खर्ज के बोझ तले दबे जाता है।
  • जिसके चलते परिस्थितियों के और बिगने पर वह अंतत: आत्महत्या करने पर मजबूर हो जाता है।

यही है यूपी में किसानों के वद से भी बदतर हालातो के कारण।

  • वही अगर उत्तर प्रदेश में भाजपा ने सरकार बनाने के बाद सबसे पहले जो कुछ घोषणाएं की थीं।
  • उनमें किसानों की कर्जमाफी भी एक थी।
  • पर यूपी सरकार किसानों के लिए खर्ज के मामले में किसानों के लिए ज्यादा सफल व मददगार साबित नही हो सकी।
  • किसान अभी भी दो घुट आंसू पीकर किसी तरह से अपना सादा जीवन रो धोकर गुजारने पर मजबूर है।
  • दरअसल कर्जमाफी इस समय किसी एक दल का एजेंडा नहीं, बल्कि हर दल की नीति है।

इस समय हर दल सबसे पहला वादा किसानों की कर्जमाफी का ही कर रहा है।

  • हम कह सकते हैं कि कर्जमाफी इस देश में फिलहाल एक ऐसा मुद्दा है, जिस पर एक राष्ट्रीय आम सहमति है।
  • यह बात अलग है कि इस पर जब राजनीति चलती है, तो एक-दूसरे पर आरोप लगाए जाते हैं।
  • राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्रियों के शपथ ग्रहण समारोह से लौटने के बाद कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी का पहला बयान यही था कि जब तक देश भर के किसानों के कर्ज माफ नहीं हो जाते, वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चैन की नींद नहीं सोने देंगे।
  • खुद राहुल गांधी ने विधानसभा चुनाव नतीजों के बाद अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में यह स्वीकार किया था।
  • एक तरफ, जहां कर्जमाफी पर आम सहमति जैसी दिखाई दे रही है।
  • वहीं कृषि संकट के दूरगामी समाधान को लेकर देश में एक सर्वदलीय मौन भी पसरा हुआ है।
  • जिसका सबसे बड़ा यूपी में देखने को मिल रहा है।
  • कृषि संकट का स्थाई समाधान क्या होगा, यह ठीक तरह से कोई नहीं बता रहा।
  • यहां तक कि दुनिया भर के आर्थिक नीति-नियंता भी इस पर मौन साधे हुए हैं।
  • हमारी सरकारों के पास कृषि क्षेत्र के लिए कुछ ही नुस्खे हैं- सस्ते कर्ज देना, बहुत दबाव पड़ने पर जिन्हें बाद में माफ कर दिया जाए।
  • सब्सिडी देना, जो किसानों से ज्यादा दूसरे ही वगारें की मदद करती है और ग्रामीण क्षेत्रों में मनरेगा जैसे कम भुगतान वाले अवसर पैदा करना।

[penci_blockquote style=”style-1″ align=”none” author=””]लेकिन ये सारे नुस्खे पिछले कुछ साल में लगातार नाकाम साबित हो रहे हैं।[/penci_blockquote]

  • किसानों के दुखों का निवारण इस पिटी-पिटाई लीक के पार कहीं है, जहां फिलहाल कोई जाता नहीं दिख रहा।
  • क्या किसी बड़े राजनैतिक दल के किसी बड़े नेता ने किसानों के हित व उनको मिलने वाली लाभकारी योजनाओं व सुविधाओं को सीधे उन तक पहुचाने की कोई सीधी तकनीक लागू कर सके।

जिससे कम से कम सरकार से मिलने वाली सुविधाएं व योजनाए उन्हें सीधे मिल सके।

  • जो कि बिचौलियों व बीच में बैठे अधिकारी व कर्मचारियों द्वारा 25 से 30% हड़प ली जाती है।
  • यही हड़पी गई बचत उनकी की मेहनत का फल होता है जो उसे न मिल कर बीच मे ही हड़प हो जाता है।
  • क्या किसी ने गौर किया कि यूपी में बीजेपी सरकार ने कितने किसानों का कितना कितना प्रतिशत कर्ज मांफ कयय या फिर यह केवल नाम मात्र में भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गया।
  • जैसे कि गत दिवसों में कुछ खबरे आई थी कि किसानों का इस बार कर्ज मांफ हुआ वह भी किसी का 70 पैसे, किसी का 1 रुपये तो किसी का 18 आदि।

क्या यही है यूपी सरकार में खर्च माफी की स्कीम।

  • की केवल कर्ज मांफी के नाम पर वोट बैंकिंग खेली जाए और किसानों के कर्ज में कुछ पैसे या रुपये मांफ कर उनको ठेंगा दिखाया जाए।

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