सरकारी उदासीनता के कारण हरदोई जिले के किसी भी सरकारी अथवा निजी अस्पतालों में (dead body) मर्चरी हॉउस नहीं बना है।

  • जिला का दुर्भाग्य है कि यहां करोड़ों रुपए की लागत से धड़ाधड़ अस्पताल भवन तो बने हैं, पर लाखों खर्च कर (dead body) मर्चरी हॉउस अब तक नहीं बन सका।
  • नतीजतन अज्ञात या गरीब लोगों की मौत के बाद भी उनके शवों (dead body) की दुर्गति होती है।

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https://youtu.be/NhQ4IdKknWE

व्यवस्था है भयावह

  • कहा जाता है कि मरने के बाद भी सुकून नहीं तो जिले के अज्ञात शवों (dead body) के साथ उन शवों पर यह बात सटीक बैठती है जो जिला अस्पताल की मर्चरी में रखवाये जाते हैं।
  • जिनकी दुर्दशा की तस्वीरें जिम्मेदारों की अनदेखी का भयावह सच दिखाती हैं।
  • विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं तथा स्वयंसेवी संगठनों ने (dead body) मर्चरी हॉउस को लेकर आवाज तक नहीं उठाई।
  • यहां के गरीब तबके के लोगों के अलावा लावारिश हालत में पाए जाने वाले अज्ञात शव (dead body) को रखने का सरकारी स्तर पर इंतजाम नहीं होने के कारण भारी परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
  • रेलवे ट्रैक पर बरामद होने वाले अज्ञात शवों को जहां रखा जाता है वहां की तस्वीरें भयावह है।
  • यहां बरसात तक में पानी में शव भीगते रहते हैं।

https://youtu.be/sf89oWowViQ

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बोलने से बच रहे सीएमओ

  • अगर कोई व्यक्ति ट्रेन अथवा सड़क दुर्घटना में मर जाता है, तो उसके परिजनों तक सूचना मिलने के पूर्व ही उसे दफना दिया जाता है।
  • चूंकि पुलिस शव को कहां रखे यह यक्ष प्रश्न है।
  • अस्पतालों में शव रखने के लिए मर्चरी हॉउस नहीं होने के कारण 72 घंटे के पहले ही शव को डिस्पोजल कर देते हैं।
  • अगर शव की शिनाख्त नहीं हो पाती है, तो उसके एक दिन में ही डिस्पोजल हो जाता है।
  • ऐसे में परिजनों को एक सप्ताह या 15 दिनों बाद सूचना मिलती है।

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  • वे मृतक का अंतिम दर्शन भी नहीं कर पाते हैं।
  • अगर किसी की शिनाख्त पांच दिनों के बाद होती है, तो परिजनों के लिए सिर्फ मृतक की याद ही बाकी रह जाती है।
  • इस पूरे मामले में सीएमओ पीएन मिश्र कुछ भी बोलने से साफ बचते नजर आये या यूं कहें जिम्मेदारी से भागते नजर आये।

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