आज़मगढ़ यानी पूर्वी उत्तरप्रदेश का वह जिला जो माफिया चलन और राजनीति की उठापठक से कभी भी अछूता नहीं रहा है| गोरखपुर और वाराणसी जैसी महत्वाकांक्षी लोकसभा के मध्य बसे इस जिले में लोकसभा चुनाव से पहले कुछ ऐसा हो रहा है कि जनता की तो बात अलग है, राजनीतिक दल ही परेशान हैं| कारण है आगामी लोकसभा चुनाव और उससे पहले हर दल में मचा हुआ आपसी घमासान|

 

वाराणसी और गोरखपुर की तरह यह लोकसभा सीट भी हाई प्रोफाईल सीट में शरीक़ हो गयी है क्योंकि यहाँ से सांसद सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव हैं| अब जब मुलायम सिंह यादव ने यहाँ से चुनाव न लड़ने का मन बना लिया है तो सपा के संभावित प्रत्याशियों के साथ-साथ बाकी दलों के प्रत्याशियों की भी बांछे खिल उठी है| कारण कि मुलायम यादव अगर चुनाव लड़ते तो बाकी के प्रत्याशियों का जीतना लगभग नामुमकिन-सा था|

 

लेकिन राजनीतिक दलों की परेशानी यहीं ख़त्म नहीं हुई| हाल यह है कि हर दल से जिले के कई नामचीन ताल ठोकने को तैयार बैठे हैं| ऐसे में राजनीतिक दलों के लिए प्रत्याशी का चुनाव करना अपने आप में एक सिरदर्द बन गया है क्योंकि अगर किसी एक को प्रत्याशी बनाया गया तो बाकी संभावितों द्वारा भीतरघात का खतरा है| खुद मुलायम सिंह यादव सपा के भीतरघात के कारण यहाँ से बमुश्किल जीत दर्ज कर पाएं थे|

 

ऐसा नहीं है कि भीतरघात का खतरा सिर्फ एक दल को है| बल्कि यहाँ तो हर दल असमंजस में है कि किसको वह प्रत्याशी बनाये और किसको मनाएं!

 

आजमगढ़ लोकसभा में भाजपा से दावेदारी ठोकने वाले नेता

 

  • रमाकांत यादव
Ramakant Yadav
चित्र में : दाएं से तीसरे स्थान पर रमाकांत यादव (चश्मा पहने हुए)| सर्वाधिकार : उत्तरप्रदेश ऑर्ग

पूर्व सांसद रमाकांत यादव का इतिहास किसी से छिपा नहीं है| पूर्वांचल के सबसे बाहुबली नेताओं में शुमार रमाकांत भाजपा के सबसे मज़बूत दावेदार हैं| रमाकांत का वर्चस्व इतना है कि वो जिस दल से चुनाव लड़े, विपक्षी को करारी हार का सामना करना पड़ा| लेकिन हाल में उन्हें जिला स्तरीय भाजपा ने कोई खास तवज्ज़ो नहीं दी| इसी से परेशान रमाकांत यादव ने योगी और राजनाथ सिंह पर खुल कर हमला बोला| यहाँ तक कि उन्होंने अबू आज़मी के साथ बैठक कर सपा में जाने का प्रयास किया लेकिन बात नहीं बनी| भाजपा के लिए रमाकांत ही सबसे मज़बूत दावेदार हैं लेकिन उनके सवर्ण विरोधी बयानों ने उनके लिए ही टिकट का ख़तरा पैदा कर दिया|

 

  • अखिलेश कुमार मिश्र उर्फ़ गुड्डू 
Akhilesh Mishra आज़मगढ़
चित्र में : भाषण देते हुए अखिलेश कुमार मिश्रा | सर्वाधिकार : उत्तरप्रदेश ऑर्ग

अखिलेश कुमार मिश्र राजनीति में तो पुराने हैं लेकिन राजनीतिक दांव-पेंच में नए खिलाड़ी हैं| भाजपा के पूर्व जिला उपाध्यक्ष पिता की विरासत को अखिलेश ने बखूबी संभाला है| भाजपा के कद्दावर नेता कलराज मिश्रा के रिश्तेदार अखिलेश आज़मगढ़ विधानसभा से भाजपा के प्रत्याशी भी रह चुके हैं| हालाँकि उन्हें सपा के वरिष्ठ नेता दुर्गा प्रसाद यादव से हार का सामना करना पड़ा था| अब लोकसभा चुनाव में भी वो अपनी दावेदारी पेश कर रहे हैं|

 

  • राजेश सिंह महुवारी
Rajesh Singh Mahuwari | आजमगढ़
चित्र सर्वाधिकार : उत्तरप्रदेश ऑर्ग

अपने समय में सपा के कद्दावर नेताओं में शुमार राजेश सिंह महुवारी ने कुछ साल पहले भाजपा का दामन थाम लिया| सवर्णों, मुस्लिमों और अन्य पिछड़ा वर्ग में पैठ के कारण भाजपा ने राजेश को आजमगढ़-मऊ विधानपरिषद चुनाव लड़वाया लेकिन सपा की सरकार और लहर के कारण हार का सामना करना पड़ा| लक्ष्मीकांत वाजपेयी और राजनाथ सिंह के करीबी राजेश आजमगढ़ लोकसभा से भाजपा में दावेदारी पेश कर रहे हैं| राजेश सिंह आरएसएस से भी जुड़े हुए हैं|

 

  • माला द्विवेदी
Mala Dwivedi आजमगढ़
चित्र सर्वाधिकार : उत्तरप्रदेश ऑर्ग

माला द्विवेदी आज़मगढ़ जिले की वरिष्ठ भाजपा नेताओं में से एक हैं| कलराज मिश्रा की रिश्तेदार माला शुरू से ही भाजपा से जुड़ी हुई हैं| माला का राजनीतिक जुड़ाव तब से है जब भाजपा आज़मगढ़ में अपने अस्तित्व के लिए लड़ रही थी| हाल ही में भाजपा की बैठक में उन्होंने लोकसभा की दावेदारी पेश करके सबको हैरत में डाल दिया|

 

आजमगढ़ लोकसभा में सपा से दावेदारी ठोकने वाले नेता

 

  • हवलदार यादव
Hawaldar Yadav आजमगढ़
चित्र सर्वाधिकार : उत्तरप्रदेश ऑर्ग

सपा में आज़मगढ़ लोकसभा से सबसे पहला नाम हवलदार यादव का है| कई बार से अपनी दावेदारी को पेश करने वाले हवलदार यादव इस बार उम्मीद लगाएं बैठे हैं कि पार्टी उन्हें मौका अवश्य देगी| वर्तमान में वह सपा जिलाध्यक्ष हैं और सपा के कद्दावर नेताओं में से एक हैं|

 

  • बलराम यादव 
Balram Yadav
चित्र सर्वाधिकार : उत्तरप्रदेश ऑर्ग

बलराम यादव को सपा के सबसे कद्दावर नेताओं में शुमार किया जाता है| मुलायम सिंह यादव के सबसे करीबी नेताओं में से एक बलराम यादव भी लोकसभा का सपना पाले हुए हैं| रमाकांत यादव से उन्हें हार का सामना करना पड़ा था लेकिन अब जब हालात रमाकांत के पक्ष में नहीं है तो बलराम अंदरखाने अपनी दावेदारी पेश कर रहे हैं|

 

  • दुर्गा प्रसाद यादव 
Durga Prasad Yadav
चित्र सर्वाधिकार : उत्तरप्रदेश ऑर्ग

पूर्व वनमंत्री एवं आठ बार आज़मगढ़ विधानसभा को सुशोभित करने वाले दुर्गा प्रसाद यादव पूर्व में सपा के आज़मगढ़ लोकसभा प्रत्याशी रह चुके हैं| फ़िलहाल वो आज़मगढ़ विधानसभा से विधायक हैं लेकिन लोकसभा चुनाव में बहती गंगा में हाथ धोने से पीछे नहीं हटना चाहते|

 

आजमगढ़ लोकसभा में बसपा से दावेदारी ठोकने वाले नेता

 

  • अब्बास अंसारी
Abbas Ansari
चित्र सर्वाधिकार : उत्तरप्रदेश ऑर्ग

इंटरनेशनल लेवल शूटर अब्बास की पहचान उनके पिता मुख़्तार अंसारी की विरासत है| अब जब मुख़्तार अंसारी बसपा के अत्यंत करीबी बन चुके हैं और अपनी राजनीतिक विरासत अब्बास को सौंपना चाहते हैं तो बसपा सुप्रीमों मायावती भी उनके इन सपनों को साकार करने का भरोसा दे चुकी हैं| बसपा से आजमगढ़ के सबसे मज़बूत दावेदार के रूप में अब्बास का नाम सबसे आगे है|

 

  • शाह आलम उर्फ़ गुड्डू जमाली
Guddu Jamali
चित्र सर्वाधिकार : उत्तरप्रदेश ऑर्ग

 

शाह आलम उर्फ़ गुड्डू जमाली मुबारकपुर विधानसभा से बसपा विधायक हैं| पूर्व में आजमगढ़ लोकसभा से बसपा ने जमाली को कई बार मौका दिया लेकिन रमाकांत के आगे उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा| रियल उद्योग में विशेष पहचान रखने वाले जमाली इस बार भी बसपा से प्रत्याशी बनने के लिए पूरा दम लगा रहे हैं|

 

  • भूपेंद्र सिंह मुन्ना
Munna Singh Thekma
चित्र सर्वाधिकार : उत्तरप्रदेश ऑर्ग

आज़मगढ़ के बाहुबलियों में से एक भूपेंद्र सिंह मुन्ना उर्फ़ मुन्ना ठेकमा भी बसपा से लोकसभा टिकट चाहते हैं| क्योंकि लालगंज लोकसभा में बसपा टिकट की पहले से ही मारा-मारी है और सुखदेव, बलराम आदि मज़बूत दावेदार हैं तो मुन्ना आज़मगढ़ लोकसभा का चुनाव लड़ना चाहते हैं| विधानसभा चुनाव में वो आजमगढ़ से बसपा प्रत्याशी रह चुके हैं|

 

गौर करने वाली बात यह है कि इन मुख्य नामों के अलावा भी कई अन्य अपनी दावेदारी ठोक रहे हैं| सबसे मुश्किल तो सपा और बसपा को होने वाली है क्योंकि संभावित गठबंधन के बाद आज़मगगढ़ लोकसभा किसके पाले में जाएगी, यह बड़ा सवाल है| अगर सपा प्रत्याशी खड़ा करती है तो बसपा प्रत्याशी का साथ मिलना मुश्किल है| ठीक वैसे ही अगर बसपा प्रत्याशी खड़ा करती है तो सपा नेताओं का साथ मिलना मुश्किल है|

 

ऐसे में आज़मगढ़ लोकसभा सारे दलों के लिए टेढ़ी खीर बन गयी है| खैर! अब यह सीट किसके पाले में जाती है और कौन भीतरघात को रोक पायेगा, यह तो आने वाला चुनाव परिणाम ही बताएगा|

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