प्रदेश सरकार द्वारा सात जनपदों के निजीकरण के टेण्डर वापस लेने और उत्तर प्रदेश में कहीं भी कोई निजीकरण न करने के लिखित वायदे के बाद बिजली कर्मचारियों एवम् अभियन्ताओं का आन्दोलन वापस लिया है। बता दें कि विगत 17 मार्च से बिजली विभाग के निजीकरण के विरोध में प्रदेश के बिजली विभाग के विभिन्न संगठन धरने पर उतर आए थे। तो वहीं कुछ जगहों पर मानव श्रृंखला बनाकर इसका विरोध किया था। प्रमुख सचिव (ऊर्जा) एवम् विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति के मध्य हुए लिखित समझौते के बाद संघर्ष समिति ने निजीकरण के विरोध में पिछले 19 दिन से चल रहे प्रान्तव्यापी आन्दोलन को वापस ले लिया है।

7 जिलों का हुआ निजीकरण का टेंडर वापस

उत्तर प्रदेश के ऊर्जा मंत्री श्रीकान्त शर्मा की उपस्थिति में पावर कारपोरेशन प्रबन्धन से हुई वार्ता के बाद सौर्हादपूर्ण वातावरण में लिखित समझौते पर हस्ताक्षर किये गये। (ऊर्जा) एवम् अध्यक्ष उप्र पावर कारपोरेशन लि0 एस पी पाण्डेय ने हस्त महेन दीक्षित, कुलेन्द्र प्रताप सिंह, लिखित समझौते के बिन्दु 01 में लिखा गया है कि इन्टीग्रेटेड सर्विस प्रोवाइडर के लिए जारी की गयी निविदा (टेण्डर) प्रबन्धन ने वापस ले लिया है। उल्लेखनीय है कि रायबरेली, कन्नौज, इटावा, उरई, मऊ, बलिया और सहारनपुर के निजीकरण के टेण्डर गत फरवरी माह में किये गये थे जिन्हें मार्च माह में निजी क्षेत्र को हैण्ड ओर किया जाना था जो अब वापस ले लिये गये हैं।

नहीं होगी कोई कार्रवाई

लिखित समझौते के बिन्दु 02 में कहा गया है कि उत्तर प्रदेश में विद्युत वितरण निगमों की वर्तमान व्यवस्था में ही सुधार हेतु कर्मचारियों एवम् अभियन्ताओं को विश्वास में लेकर सार्थक कार्यवाही की जायेगी। यह भी लिखा गया है कि कर्मचारियों एवम् अभियन्ताओं को विश्वास में लिये बिना उत्तर प्रदेश में किसी भी स्थान पर कोई निजीकरण नहीं किया जायेगा।
समझौते में यह भी लिखा गया है कि अन्य लम्बित समस्याओं, द्विपक्षीय वार्ता द्वारा समाधान किया जायेगा और वर्तमान आन्दोलन के कारण किसी भी कर्मचारी व अभियन्ता के विरूद्ध किसी भी प्रकार की उत्पीड़न की कोई कार्यवाही नहीं की जायेगी।

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