विश्व रक्तदान दिवस 2018 के मौके पर पूरी दुनिया में कई सामाजिक संगठन हमें रक्तदान करने के लिए प्रेरित करते हैं। रक्तदान के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए कई सामाजिक संगठन इस दिन कई तरीकों के कार्यक्रमों का आयोजन भी करते हैं। आज के दिन पूरे देश में रक्तदान दिवस मनाया जाता है। अवसर पर राजधानी लखनऊ के चौक स्थित किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय (केजीएमयू) के शताब्दी अस्पताल से शहीद स्मारक तक एक जागरूकता रैली निकाली गई। जागरूकता रैली ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन विभाग के द्वारा निकाली गई। जागरूकता रैली को जिलाधिकारी कौशल राज शर्मा ने हरी झंडी दिखाकर रवाना किया। इस अवसर पर केजीएमयू मेडिसिन विभाग के तमाम डॉक्टर मौजूद रहे।

जिलाधिकारी ने रक्तदान जागरूकता रैली कार्यक्रम के दौरान कहा कि विश्व रक्तदान दिवस पर सभी से रक्तदान करने की गुजारिश की जाती है लेकिन कई लोग ऐसे भी हैं जो अक्सर या हर तीन महीने में रक्तदान करते हैं। डीएम ने कहा कि इंसान को खून की जरूरत हो तो उसे दूसरा व्यक्ति ही दे सकता है। किसी दूसरे की जान बचाने के लिए अपना खून देने वाले को ईश्वर के बराबर दाता का दर्जा दिया जाता है। रक्तदान तब होता है, जब कोई व्यक्ति स्वेच्छा से अपना रक्त देता है, जिसे जरूरत पड़ने पर किसी दूसरे व्यक्ति को दिया जा सकता है या उसे दवाएं बनाने के काम में लाया जाता है।

बता दें कि रक्तदान दिवस के पीछे की कहानी उस व्यक्ति के बारे में है जिसने ब्लड ग्रुप्स का पता लगाया था। उनका नाम है कार्ल लैंडस्टीनर, जिनके जन्मदिन के दिन हम विश्व रक्तदान दिवस मनाते हैं। इससे पहले ब्लड ट्रांसफ्यूजन बिना ग्रुप के जानकारी होता था। हालांकि दुनिया का पहला रक्त आधान 1665 में माना जाता है जिसे इंग्लैंड में फिजिशियन रिचर्ड लोअर ने किया था। रिचर्ड ने दूसरे कुत्तों के रक्त को एक कुत्ते में ट्रांसफर करके उसकी जान बचाई थी। कार्ल लैंडस्टीनर कार्ल लैंडस्टीनर का जन्म 14 जून 1868 को ऑस्ट्रिया के शहर वियाना में हुआ था। कार्ल लैंडस्टीनर ने पता लगाया कि एक व्यक्ति का खून बिना जांच के दूसरे को नहीं चढ़ाया जा सकता है क्योंकि सभी मनुष्य का ब्लड ग्रुप अलग होता है।

1900-1901 दौरान कार्ल लैंडस्टीनर ने इंसानी खून के एबीओ रक्त समूह और रक्त में मिलने वाले एक अहम तत्व आरएच फैक्टर की खोज की। उन्हें 1930 में नोबल पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था। अपनी महान खोज के कारण उन्हें ट्रांसफ्यूजन मेडिसन का पितामह भी कहा जाता है। 81 बार लगातार कर चुके हैं रक्तदान बनारस के कैथी गांव से ताल्लुक रखने वाले वल्लभाचार्य पांडेय अब तक 1989 से अब तक 81 बार रक्तदान कर चुके हैं। वह बताते हैं कि 1989 के दौरान वह इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से बीएससी कर रहे थे। उस दौरान वहां एक बड़ा ट्रेन हादसा हुआ था। उस दौरान घायलों को बचाने के लिए प्रशासन की तरफ से रक्तदान की सिफारिश की गई थी। वह पहला मौका था जब उन्होंने रक्तदान किया था।

इसके बाद से वल्लभ हर साल रक्तदान कर रहे हैं और साथ ही दूसरों को भी रक्तदान के लिए जागरूक कर रहे हैं। वल्लभ का ब्लड ग्रुप ए पॉजीटिव है, और यही ब्लड ग्रुप प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भी है। वल्लभ अपने आप को खुशकिस्मत मानते हैं पीएम का बनारस दौरा होता है तो लाइव ब्लड डोनेटर के लिए कॉल किया जाता है। रक्तदान कर देते हैं दूसरों को जीवन 2012 में लखनऊ यूनिवर्सिटी के छात्र विमलेश निगम के दादा कैंसर के चलते पीजीआई में भर्ती हुए थे। उन्हें करीब 24 यूनिट रक्त की जरूरत थी।

ऐसे में परिवार ने आनन फानन में अपने हर करीबी रिश्तेदार और दोस्तों को फोन करके रक्तदान करने की गुजारिश की। तब विमलेश ने एक ग्रुप बनाया और पांच-छह लोगों को इसमें जोड़कर ब्लड डोनेशन के लिए मुहिम शुरू की ताकि फिर किसी जरूरतमंद को समय से रक्त मुहैया कराया जा सके। विमलेश के ग्रुप में अब 150 से 250 लोग जुड़ चुके हैं। भारत में हर दिन करीब 38000 लोगों को रक्त की जरूरत पड़ती है और करीब 12000 लोगों की खून की कमी के कारण जान चली जाती है। इस पहल का लक्ष्य हर एक किलोमीटर पर कम से कम 10 लोगों को रक्त दान के लिए प्रेरित करना है।केशव ने सिंपली ब्लड एप बनाया है और वह बताते हैं कि जरूरतमंदों को रक्त मुहैया कराने वाली इस एप के जरिए वह 11 देशों में 2000 से ज्यादा लोगों की जान बचाने में सफल रहे।

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