भारत में आज भी बेटियाँ को बोझ समझा जाता है. आज भी हमारे देश में लड़कियों को लड़कों से कमतर आँका जाता है. आज भी ऐसी मान्यता है कि बेटियों को चूल्हा-चौका सीखना चाहिए क्योंकि उन्हें शादी कर दूसरे घर जा कर यही सब करना है. ऐसे लोगों को नीलम से कुछ सीखना चाहिए जो अपनी बेटी को मैरीकॉम जैसी बॉक्सर बनाने में कोई कसर नही छोड़ना चाहती है.
जज्बे के आगे नहीं आने दी गरीबी-
- पट्टी अफगान में रहने वाली नीलम दूध बेचकर अपनी बेटी निकिता को मैरीकॉम जैसी बॉक्सर बनाने में जुटी है.
- एक साल पहले निकिता ने बॉक्सिंग शुरू किया था.
- लेकिन गरीबी के कारण उसने निकिता को खेलने से रोका दिया.
- लेकिन तब भी निकिता ने जिद नहीं छोड़ी.
- निकिता के जज़्बे को देख नीलम ने भी उसका सपना पूरा करने की ठान ली.
- नीलम बताती हैं कि घर के साथ-साथ बेटी की पढ़ाई व खेल पर काफ़ी खर्च होता है.
- नीलम के घर में दो भैसें हैं और उनका दूध बेचकर जो पैसा मिलता है उससे ही खर्च चल रहा है.
- सरकार और प्रशासन की तरफ से कोई सहयोग नहीं मिल पा रहा है.
स्वर्ण पदक विजेता हैं निकिता-
- निकिता की आर्थिक हालत ठीक न होने के कारण वह बॉक्सिंग किट खरीदने में असमर्थ हैं.
- जिला और राज्य स्तरीय प्रतियोगिताओं में वह गाँव की ही साथी बॉक्सर की किट उधार मांगकर जाती हैं.
- निकिता ने अब तक ज़िला और स्टेट में हुई तीन प्रतियोगिताओं में गोल्ड मैडल जीते हैं.