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भगवान श्रीराम ने क्यों दिया था लक्ष्मण को मृत्युदण्ड?

Ram Laxman

[nextpage title=”लक्ष्मण को मृत्युदण्ड” ]

भगवान श्री राम अपने अनुज लक्ष्मण से अपने प्राणो से भी अधिक प्यार करते हैं। रामचरित मानस में वर्णित एक घटना के अनुसार, रावण के वध के बाद भगवान श्री राम अयोध्या लौटते हैं और वहाँ के राजा बन जाते हैं। राजा बनने के बाद कुछ ऐसा होता है, जिसकी वजह से भगवान श्री राम को जान से प्यारे भाई लक्ष्मण को मृत्युदण्ड देना पड़ता है।

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रामचरित मानस में वर्णित इस घटना के अनुसार, भगवान श्री राम लंका विजय और अपना 14 सालों का वनवास काटने के बाद अयोध्या लौटते हैं और वहां के राजा बन जाते हैं। कुछ ही समय बाद यमदेव उनसे भेंट करने पहुँचते हैं। लेकिन बातचीत शुरू करने से पहले यमदेव भगवान श्रीराम से एक वचन मांगते हैं। यमदेव, भगवान श्रीराम से कहते हैं कि हमारी बातचीत के दौरान कोई भी हमारे बीच विघ्न नहीं डालेगा। अगर कोई हमारी बातचीत के दौरान बीच में विघ्न डालता है तो आपको उसे मृत्युदण्ड देना पड़ेगा।

यमदेव की बात सुनकर भगवान श्रीराम अपने भाई लक्ष्मण को द्वारपाल नियुक्त करते हैं और उनसे कहते हैं कि जब तक उनके और यमदेव के बीच बात हो रही है कोई भी अंदर न पाये। अगर कोई फिर भी अंदर आता है तो उसे मृत्युदंड दे दिया जायेगा। भगवान श्रीराम की आज्ञा मानकर लक्ष्मण द्वारपाल बन जाते हैं।

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लक्ष्मण के द्वारपाल बनने के कुछ ही समय बाद ऋषि दुर्वासा भगवान श्री राम से मिलने पहुँचे। द्वार पर लक्ष्मण को खड़ा देखकर ऋषि दुर्वासा ने उनसे श्री राम तक उनके आने की सूचना पहुंचाने को कहा। लेकिन लक्ष्मण अपने भाई की आज्ञा की वजह से उन्हें विनम्रता से मना कर देते हैं। इस बात पर ऋषि दुर्वासा को क्रोध आ गया और उन्होंने कहा कि अगर उन्होंने भगवान श्री राम को उनके आने की सूचना नहीं दी, तो वह पूरी अयोध्या को श्राप दे देंगे।

ऋषि दुर्वासा के क्रोध को देखकर लक्ष्मण असमंजस में पड़ गये। अगर उन्होंने अपने भाई की आज्ञा का उल्लंघन किया तो उन्हें मृत्युदण्ड दे दिया जायेगा और अगर भाई की आज्ञा का पालन करते हैं तो पूरी अयोध्या को ऋषि दुर्वासा का श्राप झेलना पड़ेगा। उसी क्षण लक्ष्मण ने अयोध्या वासियों को ऋषि के श्राप से बचाने के लिए अपना बलिदान देने का निश्चय किया और तुरंत ही अंदर जाकर भगवान श्रीराम को ऋषि दुर्वासा के आने की सूचना दी।

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लक्ष्मण की बात सुनने के बाद भगवान श्रीराम यमदेव से अपनी बातचीत ख़त्म की और उसके बाद ऋषि दुर्वासा की आव-भगत की। लेकिन अब उन्हें यमदेव को दिए वचन के अनुसार अपने भाई लक्ष्मण को मृत्युदण्ड देना था। लेकिन अपने प्राणों से प्रिय भाई को वह मृत्युदण्ड कैसे दे सकते थे। इसीलिए कोई हल न निकलते देख वह अपने गुरूदेव का ध्यान करते हैं और उनसे सही रास्ता दिखाने को कहते हैं।

भगवान श्रीराम की स्थिति को जानकर गुरुदेव ने कहा कि अपने किसी प्रिय का त्याग करना, उसकी मृत्यु के समान है। तुम अपने वचन का पालन करो और लक्ष्मण का त्याग कर दो। लेकिन जैसे ही यह बात लक्ष्मण को पता चली, उन्होंने भगवान श्रीराम से कहा कि आप मेरा त्याग न करना। आपसे दूर रहने से अच्छा है कि मैं मृत्यु को गले लगा लूं और इतना कहने के बाद लक्ष्मण ने जल समाधि ले ली।
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