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किताबों से लेकर जूते-मोजों तक के टेंडर में बेसिक शिक्षा विभाग में धांधली

योगी सरकार में प्राथमिक विद्यालयों के बच्चों को बांटे गये जूते, मोज़े और स्कूली बैगों की घटिया गुणवत्ता की पोल पहले ही खुल चुकी हैं. जिसके बाद इस मामले में बेसिक शिक्षा विभाग की धांधली से पर्दा उठाना शुरू हो गया हैं. बच्चों को बाँटें जाने के लिए किताबों से लेकर जूते मोजों तक के लिए जारी टेंडरों में भारी खेल सामने आया हैं. 

खुद शासन दबी जबान से मान रहा हैं कि बेसिक शिक्षा विभाग ने चहेतों को फायदा पहुँचाने के लिए टेंडर की शर्तों में हेर-फेर किया. किताबों से लेकर जूतें मोजों की आपूर्ति के लिए ‘अयोग्य’ कंपनियों को टेंडर में शामिल किया गया .

इस मामले में तत्कालीन पाठ्य पुस्तक अधिकारी और अब उपनिदेशक पद पर तैनात अमरेंद्र सिंह के खिलाफ अनुशासनात्मक जांच शुरू कर दी गई है। जांच एससीईआरटी के निदेशक संजय सिन्हा को सौंपी गई है। वहीं किताबों के टेंडर में घपलेबाजी के आरोपों को लेकर अमरेंद्र सिंह ने गलत बताया है.

टेंडरों की शर्ते बदल हुआ घपला:

इस मामले में जांच के बाद बेसिक शिक्षा विभाग के विशेष सचिव देवप्रताप सिंह की ओर से जारी आदेश में कहा गया है कि किताबों के प्रकाशन के लिए दो टेंडर अलग-अलग तारीखों में मंगवाए गए थे।
दूसरे टेंडर में पहले टेंडर की तुलना में ऐसे बदलाव किए गए कि कई फर्में और वितरक टेंडर से बाहर हो गए।
प्रतिस्पर्द्धात्मक दरें न मिलने से गिने चुने फर्मों की मनमानी बनी रही।
टेंडर में नई शर्तें जोड़ना पाठ्यपुस्तक अधिकारी और कागज वितरकों के कपट को जाहिर करता है। इससे नुकसान की पूरी सम्भावना है.

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कोर्ट में है जूते-मोजे के टेंडर का मामला :

uttarpradesh.org द्वारा स्कूली बच्चों को बांटे गये जूतों और बैग की हालत 3 महीनों में ही खराब हो जाने को लेकर प्रमुखता से प्रसारित खबर के बाद इस मामले में जांच के आदेश दिए गये. जांच परिणाम के मुताबिक़ जूता-मोजा खरीदने के टेंडर में कुछ ऐसी फर्मों, कम्पनियों को मौका दे दिया गया, जो शर्तें पूरी ही नहीं करती थीं।
इससे जूते-मोजे की समयबद्ध उपलब्धता और गुणवत्ता में दिक्कत हुई और प्रक्रिया में भी विलम्ब हुआ। इसलिए अमरेंद्र सिंह के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की संस्तुति की गई है। वहीं इस मामले में कोर्ट ने भी संज्ञान लिया. अभी जूते-मोजे के टेंडर का मामला हाई कोर्ट में लम्बित है।

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अधिकारियों की मिलीभगत की सम्भावना:

गौरतलब हैं कि टेंडर की शर्तों को बदलने का फैसला आठ सदस्यीय टेंडर कमिटी करती है। आला अफसर इसमें शामिल होते हैं। बदलाव की सूचना ऊपर तक जाती है। बावजूद इसके सारा ठीकरा एक अधिकारी पर ही क्यों फोड़ा गया, इस पर विभाग चुप्पी साधे है।
जांच अगर ठीक से होगी तो आंच आला अफसरों पर भी आनी तय है। विभागीय मंत्री अनुपमा जायसवाल को जब इस संदर्भ में फोन किया गया तो उनके सहयोगी ने फोन उठाकर कहा कि मंत्रीजी से बात संभव नहीं है।
बेस‍िक श‍िक्षा व‍िभाग के न‍िदेशक सर्वेंद्र व‍िक्रम स‍िंह ने बताया, ‘टेंडर के मामले में कुछ विषयों पर जानकारी मांगी गई है। सम्बंधित अधिकारी उसका जवाब देंगे।’
बेस‍िक श‍िक्षा व‍िभाग के उपन‍िदेशक अमरेंद्र स‍िंह ने बताया, ‘टेंडर की शर्त बदलने का फैसला एक व्यक्ति नहीं बल्कि पूरी कमिटी करती है। किताबों का टेंडर नियमानुसार हुआ है। जहां तक जूते-मोजे की बात है तो मुझे आए ही अभी एक महीना हुआ है।’

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