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रॉकेट लांचर छोटे हथियारों के साथ रडार संचार प्रणाली रही आकर्षण का केंद्र

Training activities -4

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जूतों की टापों ने पूरे शरीर में जोश का रोमांच भर दिया। जमीन का जर्रा-जर्रा थर्रा गया। यह कोई गणतंत्र की परेड का नहीं यह नाजारा था भारतीय सेना 11 गोरखा रेजीमेंट की नर्सरी का। जो मध्यकमान में तैयार होकर आगे अपने साहस से पूरे देश की सुरक्षा अपने कंधों में लेने वाले हैं। मंगलवार को मध्यकमान ने एक दिवसीय मीडिया से रूबरू होने का शिविर आयोजित किया।

इस मौके पर सेना के अत्याधुनिक हथियारों के साथ ही राडार संचार प्रणाली व सेना द्वारा इस्तेमाल में लाए जाने वाले अन्य उपकरण भी प्रदर्शित किए गये। मशीन गन, तोप, रॉकेट लांचर छोटे हथियारों के साथ ही रडार संचार प्रणाली भी सभी के लिए आकर्षण का केंद्र बनी। अत्याधुनिक हथियारों को करीब से देखने का मौका मिला। इस दौरान अधिकारियों ने शस्त्रों की मारक क्षमता और खूबियों की जानकारी भी दी।

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सेना और आतंकियों के बीच किसी संस्थान में प्लान बना रहे आतंकियों के मुठभेड़ का डेमो दिखाया गया। सूचना मिली कुछ एक दुकान या बैंक में घुसने का प्लान बना रहे हैं। पांच मिनट बाद सैन्य टुकड़ी को आपरेशन के आदेश दिए गए। जवानों ने चारों तरफ से उस स्थान को घेर लिया, जहां आतंकी छिपे थे और कुछ ही देर में उन्हें मार गिराया। यह दृश्य हमेशा की तरह हमारे वीर जवानों ने आपरेशन सफलता के परचम फहराने का अहसास करा रहा था।

इस मौके पर लेफ्टिनेंट जनरल, चीफ ऑफ स्टाफ हेडक्वार्टर सेन्ट्रल कमांड लेफ्टिनेंट जनरल जेके शर्मा ने अपनी बात रखी। उन्होंने कहा कि मीडिया सेना के लिए महत्वपूर्ण हथियार है. मीडिया के बिना कोई काम नहीं चलता है. मीडिया के माध्यम से ही आम जनता तक हम अपनी बात पहुंचा सकते हैं।

उन्होंने 1971 में भारत-बांग्लादेश के बीच हुए युद्ध में मीडिया की भूमिका की सराहना करते हुए कहा कि मीडिया ने ही सेना का सेना की हौसला अफजाई करते हुए उनकी संख्या ज्यादा दिखाकर दुश्मन को वैसे ही डरा दिया। दुश्मन कोई तैयारी कर पाता इससे पहले ही कम सेना के बावजूद भारतीय सेना ने अटैक किया और विजय हासिल की। इसी तरह 1999 के कारगिल युद्ध में सेना ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस मौके पर लखनऊ रक्षा जनसंपर्क अधिकारी गर्गी मालिक सिन्हा, डीपीआर पीआरओ अभिजीत मित्रा ने भी अपने विचार रखे।

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